शिक्षामित्रों की नियुक्ति का मामला
नई दिल्ली:शिक्षा मित्रों की तरफदारी करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार सुप्रीमकोर्ट पहुंची है। राज्य सरकार ने शिक्षा मित्रों की भर्ती रद करने के हाईकोर्ट आदेश को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी है। प्रदेश सरकार ने कहा है कि हाईकोर्ट के आदेश से राज्य में बेसिक शिक्षा व्यवस्था जहां की तहां ठहर गई है। एक झटके में सत्तर फीसद टीचिंग स्टाफ बाहर हो गया है। बीच सत्र में बड़ी परेशानी खड़ी हो गई है स्कूल बिना शिक्षकों के चलेंगे और बच्चों का नुकसान होगा। सरकार ने सुप्रीमकोर्ट से हाईकोर्ट का आदेश रद करने का अनुरोध किया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने गत 12 सितंबर को 170000 शिक्षा मित्रों की प्राथमिक स्कूलों में सहायक शिक्षक पद पर की गई भर्ती रद कर दी थी। आदेश के बाद से शिक्षा मित्र आंदोलन कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा बोर्ड पहले ही सुप्रीमकोर्ट मे याचिका दाखिल कर चुका है। अब प्रदेश सरकार ने भी चुनौती दे दी है।1प्रदेश सरकार ने वकील एमआर शमशाद के जरिये दाखिल की गई याचिका में कई नियम कानूनों का हवाला दिया है और कोर्ट से उन कानूनों के आलोक में मामले पर विचार करने को कहा है। सरकार ने कहा है कि हाईकोर्ट ने फैसला देते समय जमीनी हकीकत पर ध्यान नहीं दिया। यह भी नहीं सोचा कि इस आदेश को लागू करने से कितनी बड़ी संख्या में बेरोजगारी होगी। सरकार ने प्रदेश में सरकारी प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों की स्थिति बताते हुए कहा है कि 170000 शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षक के तौर पर समाहित किये जाने के बावजूद शिक्षकों की भारी कमी है अभी भी 96084 पद खाली पड़े हैं।
सरकार का कहना है कि 1999 में सर्व शिक्षा अभियान को लागू करते हुए शिक्षा मित्रों को भर्ती करने का निर्णय लिया गया था उस समय केंद्र का 2009 का कानून नहीं था। शिक्षा मित्र पिछले 15 सालों से काम कर रहे हैं। हाईकोर्ट ने एनसीटीई के उस स्पष्टीकरण पर ध्यान नहीं दिया जिसमें केंद्र से निर्देश लेने के बाद कहा गया था कि शिक्षामित्रों के लिए टीईटी की शर्त जरूरी नहीं है। इसके बावजूद 138000 शिक्षा मित्र सहायक शिक्षक बनाए जाते समय (19 जून 2014) एलीमेन्ट्री एजूकेशन में दो वर्ष के डिप्लोमा की योग्यता रखते थे। कहा गया है कि राज्य सरकार को सहायक शिक्षकों के बारे में नियम बनाने का अधिकार है। हाईकोर्ट ने बिना सोचे समङो संशोधन अधिनियम रद कर दिया है।
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