13 हजार शिक्षक हटे न समायोजित
इलाहाबाद : सहायता प्राप्त जूनियर हाईस्कूलों में भले ही शिक्षक एवं प्रधानाध्यापकों की नई नियुक्तियों की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन कई साल पहले अनियमित तरीके से तैनात शिक्षकों का समायोजन करने या फिर उन्हें बाहर का रास्ता दिखाने का प्रकरण अभी अधर में लटका है। वर्षो पूर्व तैनात शिक्षकों के भविष्य को लेकर सरगर्मी काफी बढ़ गई है। खासकर वह शख्स इस मुद्दे को हवा दे रहे हैं, जिन्हें कोर्ट ने शिक्षक की योग्यता न होने पर राहत देने से इनकार कर दिया था।
यह प्रकरण वर्ष 1978 से 2008 के बीच का है। दरअसल बेसिक शिक्षा विभाग उप्र मान्यता प्राप्त बेसिक स्कूल (जूनियर हाईस्कूल अध्यापकों की भर्ती और सेवा की शर्ते) नियमावली 1978 में ही प्रभावी हुई थी। उस समय मान्यता प्राप्त जूनियर हाईस्कूलों में प्रधानाध्यापक व शिक्षकों की नियुक्ति के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता हंिदूुस्तानी टीचिंग सर्टिफिकेट (एचटीसी) व जूनियर टीचिंग सर्टिफिकेट (जेटीसी) एवं बेसिक टीचिंग सर्टिफिकेट (बीटीसी) मान्य थे। जेटीसी की परीक्षा 1972 और एचटीसी की 1975 में खत्म हो गई, जबकि बीटीसी अभ्यर्थी तब कम मिलते थे और जो उपलब्ध थे उन्हें आसानी से परिषद के स्कूलों में शिक्षक के रूप में नौकरी मिल जाती थी। ऐसे में सहायता प्राप्त स्कूलों में बेसिक शिक्षा अधिकारी की अनुमति से बीएड अभ्यर्थियों को शिक्षक व प्रधानाध्यापक के रूप में नियुक्त किया गया। यह सिलसिला अनवरत 2008 तक चलता रहा। उसी समय नियमावली में भी संशोधन करके नियुक्ति के लिए बीएड को शैक्षिक योग्यता में जोड़ा गया।
नियमावली में संशोधन के बाद भी 30 वर्षो में नियुक्ति पाने वाले करीब 13 हजार शिक्षकों का निपटारा अब तक नहीं हो सका कि वह समायोजित होंगे या फिर उन्हें बाहर किया जाएगा। उनमें से कुछ सेवानिवृत्त हो चुके हैं। हालांकि उनका समायोजन न होने के बावजूद नियमित वेतन मिलने से समस्या गंभीर नहीं हुई। वहीं ऐसी ही नियुक्ति पाने वाले जौनपुर के भारत राज सिंह का प्रकरण कोर्ट खारिज कर चुकी है
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